تصویر بشکریہ ’دی ہندو‘
نئی دہلی: جی ایس ٹی کونسل کی حالیہ میٹنگ میں جہاں جی ایس ٹی کی شرحوں میں کمی کے فیصلے کو حتمی شکل دی گئی، وہیں ریاستوں کو ہونے والے ریونیو نقصان کے مداوے پر کوئی بات نہیں کی گئی۔ تلنگانہ اور کیرالہ نے کھل کر اس معاملے کو اجاگر کیا ہے۔ دونوں ریاستوں کے وزرا نے کہا کہ مرکز کے فیصلوں سے ریاستوں کو شدید مالی خسارے کا سامنا کرنا پڑے گا لیکن کونسل نے اس اہم پہلو پر کوئی غور نہیں کیا۔
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تلنگانہ کے ڈپٹی چیف منسٹر بھٹّی وکرمارک ملو اور کیرالہ کے وزیر خزانہ کے این بالگوپال نے دہلی میں انگریزی اخبار ’دی ہندی‘ کے ایک پروگرام میں کہا کہ 3 ستمبر کو منعقدہ کونسل میٹنگ کے ایجنڈے میں واضح طور پر مداوے کا سوال شامل تھا لیکن کارروائی کے دوران اسے نظرانداز کر دیا گیا۔ وزرا کے مطابق آٹھ ریاستوں نے میٹنگ سے قبل دہلی میں ملاقات کر کے مشترکہ موقف اپنایا تھا کہ مرکز کی شرحوں میں کمی سے ریونیو پر پڑنے والے اثرات کی تلافی ضروری ہے۔
بالگوپال نے کہا کہ ’’ایجنڈے میں مداوے کا معاملہ درج تھا مگر اس پر کوئی بحث نہیں ہوئی۔ ہم نے اپنی تقریریں کیں اور تبصرے دیے مگر جی ایس ٹی کے تحت مداوے کے سوال پر کوئی باضابطہ غور نہیں کیا گیا۔‘‘
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ریاستی وزرا نے مرکز اور ریاستوں کے درمیان مالی توازن کو غیر منصفانہ قرار دیا۔ ملو نے کہا کہ جی ایس ٹی لاگو کرتے وقت حکومت ہند نے وعدہ کیا تھا کہ ریاستوں کو جی ایس ٹی سے پہلے کے مقابلے میں کم از کم 14 فیصد ریونیو بڑھوتری ملے گی لیکن پانچ برسوں میں یہ شرح محض 7-8 فیصد رہی۔ انہوں نے کہا کہ ’’18 فیصد تو بھول جائیے، وعدہ شدہ 14 فیصد اضافہ بھی حاصل نہیں ہو پایا۔‘‘
کیرالہ کے وزیر خزانہ نے مالی اعدادوشمار پیش کرتے ہوئے کہا کہ ’’ملک میں کل سرکاری اخراجات کا تقریباً 64 فیصد ریاستیں برداشت کرتی ہیں، جبکہ کل ریونیو کا تقریباً 63-64 فیصد مرکز کے پاس جاتا ہے۔ یعنی اخراجات کا دو تہائی بوجھ ریاستوں پر ہے مگر ریونیو کا دو تہائی حصہ مرکز کو ملتا ہے۔‘‘
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انہوں نے یہ بھی واضح کیا کہ مرکز نے سیس اور سرچارج جیسے ٹیکسوں کے ذریعے صورتحال کو مزید یکطرفہ بنا دیا ہے۔ پندرھویں مالیاتی کمیشن نے مرکز کو اپنے ریونیو کا 41 فیصد ریاستوں کے ساتھ بانٹنے کی سفارش کی تھی لیکن چونکہ تقریباً 20 فیصد ریونیو سیس اور سرچارج کے ذریعے آتا ہے، اس لیے اصل میں محض 30-32 فیصد ریونیو ہی ریاستوں کو ملتا ہے۔
بالگوپال نے شکایت کی کہ جی ایس ٹی شرحوں میں تبدیلی سے متعلق کوئی تفصیلی رپورٹ ریاستی وزرا کو نہیں دی گئی۔ انہوں نے کہا کہ ’’میں گزشتہ چار برس سے جی ایس ٹی ریٹ فکسنگ کمیٹی کا رکن ہوں۔ پہلے ہر تجویز کے ساتھ تفصیلی مطالعے کی رپورٹ آتی تھی، مگر اس بار صرف مرکز کی تجاویز آئیں، کوئی رپورٹ نہیں تھی۔‘‘
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کیرالہ کے وزیر کے مطابق صرف ان کی ریاست کو ہی اس فیصلے سے تقریباً 8 سے 10 ہزار کروڑ روپے کا نقصان ہوگا، جبکہ دیگر ریاستوں کی الگ الگ گنتی ہے۔ انہوں نے کہا کہ فی الحال ملک گیر سطح پر نقصان کی کوئی واضح تصویر سامنے نہیں ہے۔
ریاستی وزرا نے مرکز سے مطالبہ کیا کہ جی ایس ٹی شرحوں میں کمی کے فیصلوں پر نظرثانی کی جائے اور ریاستوں کو ہونے والے خسارے کی فوری طور پر تلافی کے لیے ٹھوس قدم اٹھائے جائیں۔
दिल्ली में द हिंदू अखबार के एक कार्यक्रम में शामिल तेंलगाना के डिप्टी सीएम भट्टी विक्रमार्क मल्लू और केरल के वित्त मंत्री के एन बालगोपाल ने कहा कि “केंद्र के प्रस्तावित दर कटौती के कारण राजस्व पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव की आशंका जताते हुए, केरल और तेलंगाना सहित आठ राज्यों ने 3 सितंबर को जीएसटी परिषद की बैठक से पहले दिल्ली में मुलाकात की और परिषद से मुआवजे की मांग करने का फैसला किया था। बालगोपाल ने कहा कि, "वास्तव में, एजेंडे में मुआवजे का प्रश्न भी था, लेकिन उस एजेंडे पर चर्चा नहीं हुई। हमने अपने भाषण दिए, हमने अपनी टिप्पणी दी, लेकिन मुआवजे के उपकर पर क्या हो सकता था, इस पर कोई चर्चा नहीं हुई।"
जीएसटी काउंसिल के सदस्य तेलंगाना और केरल दोनों के वित्त मंत्रियों ने कहा कि जीएसटी ने केंद्र पर राज्यों की निर्भरता को काफी बढ़ा दिया है, और विकास पर होने वाले खर्च के लिए राज्यों की अपने स्वयं के धन जुटाने की उनकी क्षमता को कम कर दिया है। तेलंगाना के उपमुख्यमंत्री भट्टी विक्रमार्क मल्लू और केरल के वित्त मंत्री के.एन. बालगोपाल ने वर्तमान केंद्र-राज्य राजकोषीय गतिशीलता को लेकर राज्यों के सामने आने वाले मुद्दों पर बात की। मल्लू ने समझाया कि, "भारत सरकार ने राज्यों को आश्वासन दिया था कि उन्हें जीएसटी-पूर्व अवधि की तुलना में 14% कर मिलेगा, जब यह लगभग 14-18% हुआ करता था, लेकिन इस अवधि के अंत तक, हमने महसूस किया है कि 18% को भूल जाइए, वे इन पांच वर्षों में कर राजस्व में 14% वृद्धि को भी स्थिर नहीं कर पाए हैं। यह लगभग 7-8% है।" इसके साथ ही यह तथ्य भी है कि देश में अधिकांश खर्च राज्यों द्वारा किया जाता है, जबकि अधिकांश राजस्व केंद्र के पास जाता है।
बालगोपाल ने बताया कि, "पंद्रहवें वित्त आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, पूरी सरकार के कुल खर्च का लगभग 64% राज्य सरकारों द्वारा वहन किया जाता है। उन्होंने कहा कि, "और वे कह रहे हैं कि सरकार के कुल राजस्व में से, पूरे भारत में, लगभग 63-64% संघ (केंद्र) को मिल रहा है। तो, दो-तिहाई खर्च राज्यों द्वारा वहन किया जाता है लेकिन दो-तिहाई राजस्व केंद्र के पास जाता है।"
दोनों मंत्रियों ने कहा कि इस संरचना को केंद्र द्वारा उपकर (सेस) के उपयोग से और असंतुलित किया गया है। उन्होंने कहा कि जबकि पंद्रहवें वित्त आयोग ने केंद्र को अपने राजस्व का 41% राज्यों के साथ साझा करने की सिफारिश की थी, इसका लगभग 20% राजस्व उपकरों से आता है जिसे साझा करने की आवश्यकता नहीं होती है। नतीजतन, केंद्र के लगभग 30-32% कर ही वास्तव में राज्यों के साथ साझा किए जाते हैं।
बालगोपाल ने कहा कि जीएसटी दरों को तय करने वाली समिति को आमतौर पर किसी भी नई व्यवस्था की योजना पर विस्तृत रिपोर्ट मिलती है, लेकिन हाल में दरों में जो बदलाव किए गए हैं उससे जुड़ी कोई रिपोर्ट इस समिति को नहीं मिली। उन्होंने बताया कि "मैं पिछले 3-4 वर्षों से जीएसटी दर तय करने वाली समिति में था। जब हम बैठक में बैठते थे, तो सभी विस्तृत अध्ययन रिपोर्ट आती थीं। इस बार, कोई रिपोर्ट नहीं आई, केवल केंद्र सरकार का सुझाव आया। इसलिए, विस्तृत विश्लेषण नहीं किया गया।"
उन्होंने आगे बताया कि "नुकसान कितना है, इसकी कोई स्पष्ट तस्वीर नहीं है। उनका कहना था कि, "हमने हिसाब-किताब लगाया कि केरल के लिए, हमें लगभग ₹8,000-10,000 करोड़ राजस्व का नुकसान होने वाला है। हर राज्य की अपनी गणना है। इसलिए, वास्तविक अखिल भारतीय तस्वीर फिलहाल उपलब्ध नहीं है।"
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